madhyabharatlive

Sach Ke Sath

पुश्तैनी रंगरेज के मकड़जाल से पहली मर्तबा बाहर आया प्रशासनतंत्र।

राज्यपाल व मुख्यमंत्री ने जनजाति गौरव दिवस पर आदिवासी रंगरेज महिला को सम्मानित कर आदिवासियों का गौरव बढ़ाया।

कुक्षी/धार। (वरिष्ठ पत्रकार मदन काबरा) बाग प्रिंट की पहचान किसी जमाने की पुश्तैनी आदिवासी पहनावे की प्रिंट से बनी थी। परन्तु जबसे इस बाग प्रिंट ने आधुनिकता का आवरण ओढ़ लिया यानि बेडशीट, ड्रेस मटेरियल के क्षेत्र मे यह बाग प्रिंट यानि ठप्पा छपाई आई तबसे इस प्रिंट ने अपनी अन्र्तराष्ट्रीय पहचान बनाई है। यह पहचान स्थानीय आदिवासी कलाकारों की ही देन है। परन्तु इस बाग प्रिंट को पुश्तैनी रंगरेजों ने अपने मकड़जाल मे इस तरह फाँस रखा है कि इस प्रिंट के कारखानों पर काम करनें वाले अधिकांश आदिवासी कलाकार एड़वांस धनराशि मे बंधुआ मजदूर की भाँति मजबूर है। वह अपना स्वयं का न तो कारखाना खोल पाते है और न ही शासन प्रशासन तंत्र उन्हें सुविधाएं उपलब्ध करवा पाता है, जो पुश्तैनी रंगरेज के एकाध परिवार को ही हमेशा उपकृत करता रहता है।

जबकि यही परिवार शासकीय भूमि पर अतिक्रमण पर अधिकृत वैध कराने के लिए किसी समय (तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबुलाल गौर के समय) देश को छोड़ने की धमकी देता है। यही नही शासन प्रशासनतंत्र इसी परिवार को ही ठप्पा छपाई मे पुरस्कार की बरसात करता रहता है। इसकी कोई जाँच क्यों नही कि जाती है कि इसी एक ही परिवार को ही दशकों से पुरस्कार क्यों दिये जा रहे है। जबकि इन पुरस्कारों का हक आदिवासी रंगरेजों का भी बनता है। हालात यहां तक ही नही बिगड़े हालात यह है कि इन पुश्तैनी रंगरेजों के यहाँ कारखानों मे बाग प्रिंट ठप्पा छपाई से लेकर भट्टी व नदी पर कपड़ो की धुलाई व तैयार माल करने तक की मेहनत आदिवासी कलाकार करते है।

यह पुश्तैनी अल्पसंख्यक रंगरेज परिवार सिर्फ मैनेजमेंट व बाजार की चकाचौंध मे ही स्थानीय आदिवासीयों की योग्यता व काबलियतता का शोषण करतें है। परन्तु मजाल है कि इन आदिवासियों को बाग प्रिंट के इस कुटीर उघोगों से कोई आदिवासी विधायक या सासंद या जनप्रतिनिधि कोई तो पुरस्कृत करें। इन आदिवासी रंगरेजों को पुरस्कार क्यों नही मिलते है। विधानसभा या संसद मे यह आवाज तक उठाना उचित नही समझते है, तो इनकी मानसिकता को भी समझा जा सकता है।

Why are the tribal dyers being ignored? What is the reason?
क्रांतिकारी जनजातिय वीर पुरुष सपूत बिरसा मुण्डा की जयंती, जनजाति गौरव दिवस पर धार मे आयोजित समारोह मे म.प्र. के महामहिम राज्यपाल मंगूभाई पटेल म.प्र. के मुख्यमंत्री मोहन यादव एवं सासंद व महिला बाल विकास विभाग राज्य मंत्री श्रीमती सावित्री ठाकुर ने बाग प्रिंट मे ठप्पा छपाई का जनजातीय गौरव सम्मान जनपद कुक्षी के रामपुरा की श्रीमती सैकड़ीबाई पति अमनसिंह को प्रदान करते हुए।

ताज्जुब तो यह भी है कि आदिवासी समाज के जितने भी संगठन है। उनके बुद्धिजीवी नेताओं के जेहन मे भी यह बात क्यों नही आती है कि हमारे समाज की इन प्रतिभाशाली रंगरेज जो ठप्पा छपाई मे निपुण है। हम उन्हें उनके इस रोजगार के क्षेत्र मे सहयोग व मार्गदर्शन दे।

कुक्षी तहसील के अनेक गाँवों मे धन अभाव के चलते कई प्रतिभाशाली आदिवासी समाज के रंगरेज परिवार की संघर्षशीलता के साथ अपने हुनर का उपयोग कर अपना रोजगार कर रहे है। इन रोजगार व्यवसायी के बीच एन.जी.ओ.रुपी वे बिचौलिए आकर इनके नाम ओर काम का शोषण कर हजारों रूपयों की चोट पहुंचाकर शासन से इन आदिवासी रंगरेज की सुविधाओं के नाम लाखों रुपया समेटकर चले जाता है। आदिवासी रंगरेज बेचारा मुँह तकता रहता है। हालात यही नही ठहरते है। इनके शोषणकर्ताओं के लिए आदिवासी समाज के अधिकारी ही चंद सिक्कों मे बिक जाते है, यह भी ताज्जुब से कम नही है।

खैर इनके शोषण की कहानियां बहुत गहरी है। परन्तु कोई प्रिंट मीडिया भी इस क्षेत्र मे खबर के लिये मेहनत नही करता वह भी चकाचौंध मे चकाचक रहना चाहता है। खैर जो भी हो परन्तु  बिरसा मुण्डा जिन्होंने राष्ट्र की आजादी की लौ जगाई थी, आदिवासियों के लिए वे एक प्रेरणास्रोत रहे, आजादी के 60 बरस बाद तक वह इतिहास के पन्नो पर नही आये, परन्तु जबसे भाजपा शासन ने पदार्पण किया तो आर.एस.एस. की एक शाखा वनवासी कल्याण आश्रम ने आदिवासी समाज के इन भूलें बिसरे क्रांतिकारियों का इतिहास इनके चित्र के साथ संजोये थे। वे सब अब राजनीति के केन्द्र बिंदु बन गये है। यह हम सब हिन्दुस्तानीयों के लिए गर्वित होने की बात है।

वीर स्वातंत्रय संग्राम सेनानी बिरसा मुण्डा की जयंती को जनजाति गौरवदिवस के रुप मे मनानें के लिए म.प्र.शासन का गौरवशाली निर्णय सराहनीय कदम है। इससे बढ़कर हमारा क्या शौभाग्य हो सकता है कि यह जनजाति गौरवदिवस म.प्र.के महामहिम राज्यपाल व मुख्यमंत्री धार जिला मुख्यालय पर आकर उन हजारों लाखों आदिवासियों के बीच उनके समाज के वीरयोद्धा की वीरगाथाओं के साथ समाज मे उभरती प्रतिभाशाली प्रतिभाओं का सम्मान कर सबको गौरवान्वित करती हो।

हमें सबसे बड़ी खुशी तब होती है कि दुर्योधन बना प्रशासन तंत्र पुश्तैनी रंगरेज के मकड़जाल से बाहर आकर बाग प्रिंट कि आदिवासी महिला रंगरेज श्रीमती सैकड़ीबाई पति अमनसिंह को उसकी योग्यता व काबलियतता का पैमाने को सही नाप माप कर उन्हें जनजातीय गौरव सम्मान का सबसे बड़ा पुरस्कार राज्यपाल व मुख्यमंत्री द्धारा सम्मानित करना व इस क्षेत्र के आदिवासी रंगरेजों के लिए गौरवशाली क्षण रहा।

क्योंकि दशकों से ये आदिवासी रंगरेज ठप्पा छपाई कर रहे है। परन्तु हस्तशिल्प निगम हो या ग्रामोद्योग विभाग हो या केन्द्र का व म.प्र. शासन हो सभी ने अब तक जो पुरस्कार दिये है वे सिर्फ धनबल पर देकर अपने कर्तव्यों की ईतिश्री कर ली और उपेक्षित आदिवासी समाज अलग थलग पड़ा रहा।

अगर यह जनजाति गौरव दिवस क्रांतिकारी बिरसा मुण्डा के नाम नही होता तो निश्चित मानिए जिला प्रशासनतंत्र इस आदिवासी महिला रंगरेज की जगह कोई पुश्तैनी अल्पसंख्यक रंगरेज होता, जोकि इस क्षेत्र का दुर्भाग्यपूर्ण निर्णय होता।

संपादक- श्री कमल गिरी गोस्वामी

Discover more from madhyabharatlive

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading