धार। पुलिस महकमे ने पत्रकारों को सिर्फ अपनी वाहवाही लूटने के लिए समझ रखा है। पत्रकारों की दुर्दशा किसी से छुपी नहीं है। आज के समय में पत्रकार कैसे अपना जीवन यापन कर रहै है, कैसे अपने परिवार को चल रहा है, किस प्रकार से पत्रकारों पर झूठे आरोप लगाकर लगातार प्रकरण दर्ज किए जा रहे हैं, यह सब किसी से दबा छुपा हुआ नहीं है, फिर भी पत्रकार जगत एक मात्र ऐसा ठगा हुआ प्राणी है, जो पुलिस के इशारों पर चलता नजर आता है।
जैसा पुलिस कहती, वैसा ही पत्रकार लिखते हैं —
पुलिस कह दे हमने इस मुजरिम को पकड़ने के लिए काफी मशक्कत की, जिसके दौरान इसके हाथ पैर टूट गए। पत्रकार वही लिखता है। जबकि हकीकत सभी जानते हैं कि पुलिस ने उसे पकड़ कर खूब ठुकाई की, उसके हाथ पैर तोड़ दिए। जिसके बाद अस्पताल ले जाकर उसको पट्टे चढ़वाना और फिर आकर उस मुजरिम के साथ फोटो खिंचवाकर पत्रकारों को कहा जाता हैं कि हमने इसको पकड़ने का प्रयास किया यह भाग रहा था, तब गिर गया और इसके हाथ पैर टूट गए, क्या जमाना आ गया है साहब।
यह एक क्रांतिकारी पत्रकार की बेबाक कलम है —
आपको बता दे कि जब किसी आम आदमी का विवाद होता है तब वह सबसे पहले उम्मीद की किरण सिर्फ पुलिस वालों से रखता है। पर पुलिस वहां भी अपना अधिकार जमा कर कहती है कि थाने में आए हो तो मंदिर पर कुछ चढ़ावा चढ़ा कर ही जाना पड़ता है और उससे रिश्वत ली जाती है।
धार शहर की बात की जाए या धार के आसपास थाना क्षेत्र की बात की जाए तो कई लोगों पर जानलेवा हमला होता है। भीड़ के द्वारा उन पर हमला किया जाता है। वह कई दिनों तक उपचाररत होते हैं। उसके बावजूद पुलिस पैसों का लेनदेन करने के बाद या यू कहे की नेता नगरियों के दबाव में आकर सिर्फ एनसीआर करके मामलों में पुलिस इतिश्री कर लेती है। ऐसे कई उदाहरण मध्य भारत लाइव न्यूज़ के पास साक्षों के साथ उपलब्ध हैं।
बावजूद इसके जब बात पत्रकार की आती है तो पुलिस के नुमाइंदे बगैर सोचे समझे पत्रकारों पर प्रकरण दर्ज कर देते हैं। इतना ही नहीं पत्रकारों के खिलाफ फर्जी चिकित्सालय, क्लीनिक, मेडिकल स्टोर या लेब चलाने वाले अपना संगठन बनाकर पुलिस को आवेदन देते हैं कि पत्रकार द्वारा उन्हें धमकाया जा रहा है, डराया जा रहा है, उनसे पैसों की मांग की जा रही है, उनके महिला स्टाफ के साथ बदतमीजी की जा रही है। अरे भाई जब पत्रकार के द्वारा इतनी क्रिमिनल हरकतें की जा रही होगी तब किसी ने तो उन्हें देखा होगा, किसी ने उन्हें इस प्रकार की हरकत करते हुए देखा या जिस महिला के साथ बदतमीजी की गई उस महिला ने कोई आपत्ति जताई या उस महिला ने किसी थाने में कोई आवेदन दिया, जी नहीं जब उस महिला को उपस्थित किया जाएगा तब वह महिला संबंधित को जानती भी है या नही यह बड़ा सवाल बनता हैं।
जी नहीं बिल्कुल नहीं जानती होगी, क्योंकि उस महिला को पता ही नहीं की किसी पत्रकार के द्वारा उसके साथ बदसलूकी या बेज्जती की गई। इस तरीके के आवेदन पुलिस खुशी-खुशी रख लेती है। क्योंकि उन्हें भी पत्रकारों से तकलीफ है।
क्योकि पत्रकार पुलिस के काले कारनामों की खबर बे रोक-टोक बेहिचक अपने दमखम पर लगाते हैं।
क्या नवागत जिला पुलिस अधीक्षक फिजूल की वा-वाही लूटने के बजाय ऐसे काले कारनामे करने वाले लोगों पर और काले कारनामों की कमाई के ऊपर अपना हक जताने वाले पुलिस अधिकारियों पर कार्रवाई करेंगे या पहले जैसे पुलिस अधीक्षक के अनुसार सिर्फ अपनी वाह वाही लूटेंगे, जेब गर्म करेंगे।
क्योंकि जग जाहीर हे की पुलिस का हफ्ता महीना फिक्स होता है। पुलिस की उगाई किसी से छुपी हुई नहीं है, चाहे दारू वाले हो चाहे सट्टे वाले हो या फिर कोई और अवैध धंधे वाले हो।
हाल ही के मामले में हम बता दे की देहव्यापार के मामले में कुछ लोगों को गिरफ्तार किया जाता है बड़ा लेनदेन होने के बाद उन लोगों को छोड़ दिया जाता है। जबकि देहव्यापार जैसे संगीन अपराध गैर जमानती होते है। जिसमें संलिप्त व्यक्तियों की जमानत नही होती है। हाई कोर्ट के अंदर अपील होने के बाद करीब 3 महीने बाद ही उस मामले पर संज्ञान होता है और जमानत होते-होते छह माह से अधिक समय बीत जाता है। पर हमारे यहां कुछ अलग ही हैं। पुलिस ऐसे मामलों में व्यक्तियों को खुलेआम छोड़ देती है। इसके पीछे एकमात्र कारण यही है कि बड़ा लेनदेन पुलिस को दबा के रखता है

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