बेटमा/इंदौर। वैसे तो पुलिस की कार्यप्रणाली किसी से छुपी हुई नहीं है, पर फिर भी आज की तारीख में जनता को भरोसा सिर्फ पुलिस पर ही है, क्योंकि दूसरा कोई विकल्प नहीं।
पुलिस कर्मचारियों ने इस प्रकार से भ्रष्टाचार कर रखा है कि थाने में जाओ तो बगैर पैसे के कोई काम नहीं होता या तो आप राजनीति लगाओ या फिर पुलिस को जाकर पैसा दो। इसमें सबसे बड़ी बात यह है कि अगर सामने वाला पुलिस का करीबी या रिश्तेदार निकला तब भी उसी का सिक्का चलेगा।
ऐसा ही एक मामला बेटमा थाने का है, जहां पर एक लड़के को गवाही के लिए पुलिस पकड़ कर लाती है, 2 से 3 घंटे पुलिस उसे बिठाकर रखती है। उसके बाद जब उसे छोड़ा जाता है तब सामने वाला शिकायती पक्ष उस लड़के को अगवा करके अपने साथ ले जाता है। इतना ही नहीं उसे जब अगवा करके ले जाया जाता है उसके वीडियो फुटेज थाने में लगे सीसीटीवी कैमरे में कैद हो जाते हैं।
उसके बाद पीड़ित पक्ष की ओर से अगवाह किए हुए व्यक्ति की पत्नी पुलिस थाने में आवेदन देती है। इसके बाद भी पुलिस अनसुनी करते हुए उन अपराधियों को संरक्षण देती है। जबकि फरियादीया ने नाम दर्ज व्यक्तियों के नाम बताएं।
इतना ही नहीं जो लोग अगवा करके ले गए उन लोगों ने उस व्यक्ति के घर जाकर उसकी मां से सोने और चांदी के कुछ आभूषण भी ले लिए, इतनी बड़ी घटना में पुलिस ने आज तक कोई प्रकरण दर्ज नहीं किया? आखिर क्यों???
सिर्फ और सिर्फ उस व्यक्ति की गुमशुदगी की दर्ज कर रखी है। जबकि जग जाहिर है कि उसे थाना परिसर से अगवा किया गया। किडनैपिंग एवं फ्रॉड करने की 420 जैसी गंभीर धाराओं में उन व्यक्तियों पर प्रकरण दर्ज होना था, जो कि आज तक नहीं हुआ ना ही पुलिस उस व्यक्ति को खोज पाई न ही पीड़िता को न्याय दिल पाई।
क्या बोले जिम्मेदार —
इस संबंध में जब हमारे द्वारा अनुविभागीय अधिकारी पुलिस देपालपुर संघ प्रिया समृत को व्हाट्सएप के द्वारा जानकारी दी गई, तब उनके द्वारा कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई।
जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने पुलिस अधिकारी —
जब हमारे द्वारा फरियादया के द्वारा दिया गया आवेदन एवं संपूर्ण घटना की जानकारी थाना प्रभारी मीना कर्णावत को व्हाट्सएप पर भेजी गई, तब उन्होंने देखा अनदेखा कर दिया। इससे साफ जाहिर होता है कि पुलिस का पूरा इंवॉल्व इस मामले में है। कुल मिलाकर पुलिस इस मामले को दबाना चाहती है।

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