अंधा बाटे रेवड़ी और घर-घर के खाए इस कहावत को चरितार्थ करता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आयोजन।
धार। जहां एक और संपूर्ण प्रदेश का शासन प्रशासन प्रधानमंत्री के जन्मदिवस के अवसर पर संपादित हो रहे कार्यक्रम को लेकर पूर्ण रूप से तैयारियों में जुटा हुआ है। वहीं मध्यप्रदेश के धार जनसंपर्क विभाग के द्वारा पत्रकारों के साथ भेदभाव पूर्ण तरीके से व्यवहार किया जा रहा है।
सीएम के निरीक्षण के दौरान पत्रकारों को नही मिला पीने का पानी —
आपको बता दे की विगत दिवस मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव देश के प्रधानमंत्री के कार्यक्रम का जायजा लेने भेसोल कार्यक्रम स्थल पहुंचे थे। वहीं कार्यक्रम स्थल भ्रमण के लिए धार के जनसंपर्क विभाग के द्वारा पत्रकारों के लिए एक बस वाहन की व्यवस्था की गई थी।
जर्जर अवस्था में पानी टपकती हुई बस से ले जाया गया पत्रकारों को —
पीएम मित्रा पार्क में मुख्यमंत्री की सभा का अवलोकन करने पहुंचे तब गर्मी में बगैर बारिश के बस में पानी टपक रहा था। इतना ही नहीं पत्रकारों को पीने के लिए पानी की व्यवस्था भी नहीं थी। कई पत्रकार गण पीने के पानी के लिए व्याकुल होते रहे।
पत्रकारों को खुश करने के लिए भोजन पार्टी की व्यवस्था या फिर पत्रकारों से चर्चा के बहाने लाभ शुभ का बड़ा खेला !
बात अगर 15 सितंबर 2025 के कार्यक्रम की, की जाए तो पत्रकारों के लिए एक पत्रकार वार्ता का आयोजन एक निजी होटल में किया गया था। जिसमें सह भोज की व्यवस्था की गई थी। इस सह भोज कार्यक्रम में पत्रकारों की भीड़ को सिर्फ दिखावे के लिए इकट्ठा किया गया था। भीड़ को सिर्फ भोजन करवा कर यह साबित किया गया कि प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में आपको उपस्थित होना है।
इस भीड़ में कोई कार्यक्रम आयोजित नहीं किया गया, ना ही जनसंपर्क विभाग धार के सहायक संचालक विट्ठल महेश्वरी द्वारा पत्रकारों को कोई दिशा निर्देश दिए गए, ना ही किसी प्रकार की कोई सुविधाओं के बारे में बताया गया, सिर्फ और सिर्फ भीड़ को भोजन करने के लिए इकट्ठा किया गया था ताकि लाभ-शुभ का बड़ा खेला किया जा सके क्योंकि बिल तो लगना ही है। भोजन के पश्चात भिड़ स्वतः ही धीरे-धीरे खत्म होती चली गई।
इस सह भोज कार्यक्रम से जाहिर होता है कि शासन प्रशासन अपना उल्लू सीधा करने के लिए पत्रकारों सहित आम जनता की भीड़ को जुटाने में लगा हुआ है। जो शासन प्रशासन कहेगा वह लिखो, जो शासन प्रशासन बताऐ वह दिखाओ अंधा बाटे रेवड़ी और घर-घर के खाए इस कहावत को चरितार्थ करता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आयोजन।
पत्रकारों को जारी पास के लिए पक्षपात पूर्ण रवैया —
पत्रकारों के प्रवेश पास के लिए भी कई पत्रकारों के द्वारा कवायद जारी है। कई लोगों को आज तक सूचना प्राप्त नहीं हुई। पत्रकारों के प्रवेश पास आजोजन के एक दिवस पूर्व देर शाम तक जारी नही हुए। जबकि बदनावर क्षेत्र में पत्रकारों के पास दोपहर में ही वितरित हो गए थे तो धार का जनसंपर्क विभाग इतना स्लो क्यों ?
प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में 2 घंटे पहले पहुंचना है, उसके बाद नहीं होगा प्रवेश —
17 सितंबर को सुबह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कार्यक्रम है, जहां पर प्रोटोकॉल के तहत 2 घंटे पूर्व से ही किसी भी अधिकारी या पत्रकारों के वाहन को प्रवेश की अनुमति नहीं है। इससे साफ जाहिर होता है की कितनी बड़ी लापरवाहियां की जा रही है। शासन प्रशासन को पत्रकारों के आवागमन से कोई लेना-देना नहीं है। पत्रकार आए या ना आए शासन प्रशासन ने उनकी ओर से खाना खिलाकर पत्रकारों से इति श्री कर ली।
सिर्फ भोजन खिलाकर पत्रकारों को खुश करने की नाकाम कोशिश —
मतलब साफ तौर पर देखा जाए तो पत्रकारों को भोजन खिलाकर खरीद लिया गया, धार जिले का पत्रकार बड़ा ही संवैधानिक मीडिया है जो की धार जैसे जिले को प्रशासन के इशारों पर मैनेज किया हुआ है। पुलिस किसी व्यक्ति को पड़कर यह कहती है कि यह व्यक्ति भाग रहा था इसे हमने पकडा यह गिर गया इसकी टांग टूट गई। जबकि जग जाहिर है कि पुलिस उसे पकड़ कर मारते हुए टांग तोड़ देती है। इतना ही नहीं शासन प्रशासन के कई कारनामों को मीडिया छुपा रही है। सिर्फ इसके पीछे एक ही कारण है की पत्रकार शासन प्रशासन का मान सम्मान करता है ना कि शासन प्रशासन के दिए हुए टुकड़ों पर पलता है।
धार जनसंपर्क विभाग करता है पत्रकारों से पक्षपात, नहीं दी जाती किसी प्रकार की कोई सुविधा —
धार जिले का जनसंपर्क विभाग पत्रकारों को कभी कोई सुविधा उपलब्ध नहीं कराता चाहे मुख्यमंत्री का प्रोग्राम हो चाहै प्रधानमंत्री का। पत्रकारों को अपने दमखम पर प्रवेश लेना होता है। जबकि जनसंपर्क विभाग की जिम्मेदारी होती है कि उनके कार्यालय के कर्मचारी द्वारा किसी प्रकार का कोई प्रवेश पास जारी किया जाए या आईडी कार्ड जारी नहीं करने पर जनसंपर्क विभाग का कोई कर्मचारी पत्रकारों को वेरीफाइड करके उक्त कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए अनुमति प्रदान करें।
धार का जनसंपर्क राम भरोसे —
यहां तो उल्टा ही है पत्रकारों को सिर्फ भीड़ दिखाने के लिए इकट्ठा किया जाता है। पत्रकार सिर्फ एक भीड़ का हिस्सा होता है। उनको न बैठने की व्यवस्था होती है ना ही उनके खाने-पीने की व्यवस्था होती है। पत्रकार सिर्फ एक भीड़ का हिस्सा बनकर रह जाता हैं। यह तब साबित हुआ जब सोमवार 15 सितम्बर को 1 बजे एक निजी होटल में जनसंपर्क विभाग के द्वारा जारी मैसेज पर कुछ पत्रकार होटल पहुंचे। तब उपसंचालक विट्ठल महेश्वरी द्वारा पत्रकारों को कहा गया कि सब अपने-अपने एक दो व्यक्ति को फोन लगाओ सबको बुलाओ। इससे यह साबित होता है कि सिर्फ इन्हें पत्रकारों की भीड़ दिखाना थी, ताकि यह लोग बड़े पैमाने पर लाभ-शुभ का खेल कर सके।
सिर्फ कहने मात्र को पत्रकार लोकतंत्र का चौथा स्तंभ —
कहने को तो पत्रकार लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है, लेकिन संविधान के किसी भी लेख में पत्रकारों को कोई अधिकार प्राप्त नहीं है। इसी का फायदा शासन प्रशासन के नुमाइंदे उठाते हैं। पत्रकारों का अपमान भी करते हैं, पत्रकार फिर भी अपनी कलम उठाता है, हर जगह जलील और अपमानित होते हुए वहां पर पहुंचता है और खबरें प्रकाशीत करता है, वह अपने धर्म को भली भांति निभाते हैं।

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