06/12/2025

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जल गंगा संवर्धन अभियान के तहत उन खोये कुएं तालाब को ढूंढा जाए जो कभी बाग की धरोहर थी !

बाग/धार। (मदन काबरा) जब शासन की कोई नई योजनाएं आती है, प्रशासन हरकत मे आ जाता है, क्योंकि उनको नौटंकी करना दिखावा करना और कागजातों की खानापूर्ति कर शासन के धन को येनकेन ठिकानेदारों के घर ठिकाना लगाना होता है।

वर्तमान समय मे जल गंगा संवर्धन अभियान की धुम मची है। जनपद के प्रशासनिक अफसर जाग गए है, उन्होंने जनप्रतिनिधियों को जगाना और उनकी पूछपरख शुरु कर दी। बाग की उपरोक्त न्यूज प्रंशसनीय है, क्योंकि जनप्रतिनिधि ऐसा नही है जो अकेला चना भाड फोड सके, उसको प्रशासन का सहारा लेना पड़ता है। आज प्रशासन को जनप्रतिनिधियों की उपस्थिति की आवश्यकता है।

अब प्रशासन ले देकर बस बाघनी नदी को गंगा बनाने की कवायद कि जा रही है। क्योंकि उसमें प्रशासनिक अफसरों को कागजातो के माध्यम से सोने की खान नजर आ रही है। परन्तु इन्हें इस अभियान मे वह नजर नही आ रहा है कि,जनपद प्रांगण का कुआ कहा गायब हो गया। इन प्रशासनिक व जनप्रतिनिधियों को यह नजर नही आ रहा है कि गवलीपुरा का वह कुआं कहा खो गया जहाँ से कभी ग्राम पंचायत नल जल योजना से जल वितरण संचालन करती थी। आज इस कुएं पर अतिक्रमण हो गया तो जल गंगा अभियान कहा खो गया। वह इन खोये कुओं को ढुंढ़ क्यों नही रहा है।

शासन प्रशासन बाग के उस पाचवीं सातवीं शताब्दी के राजा भुलुण्ड के द्धारा बनाये गये तालाब को संवर्धन कर उसे सहेजने का प्रयास क्यों नही कर रहा है। उस शताब्दी के बने तालाब की पाल आज भी संरक्षित होकर बागवासी उसे भुलुण्ड से भुण्डीया तालाब के नाम से जाना जाता है, उस तालाब को इस अभियान मे क्यों नही लिया जा रहा। जबकि शासन की इस महत्ती योजनाओं मे ऐसे काम महत्वपूर्ण है। तीसरा कुआं नदी मे था उस कुएं को ढुंढकर इस अभियान की शुरुआत क्यों नही करतें है, क्योंकि वहाँ श्रमदान अधिक और धन कम आयेगा।

कहने का तात्पर्य यह है कि पिछले तीन दशक पूर्व का बाग का राजस्व रेकार्ड खंगाला जावें और उन कुओं वावडीयो और तालाबों के लिये जलगंगा संवर्धन पर काम करें तो यह योजना सार्थकता का मूर्तरूप ले सकती है। जिसमें योजना का बाग का उद्धार हो सकेगा। अन्यथा योजनाओं के कागजी पेट भरकर अपनी उदरपूर्ति करना लक्ष्य नजर आता है जो इस योजनाओं के भागीरथ है उनकी भौतिक सुखसुविधाओं की वृद्धि ही करेगा ऐसा नजर आता है।

संपादक- श्री कमल गिरी गोस्वामी

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