सरदारपुर/धार। (भारत झूंझे) भारत का इतिहास गवाह है जब-जब भी अन्याय अत्याचार हुआ है। भगवान ने किसी न किसी रूप में पृथ्वी पर अवतार लिया है। कंस का नाश करने के लिए भगवान कृष्ण को बंदी ग्रह -जैल में अवतरित होना पड़ा। जन्मअष्टमी तभी से यह पर्व मनाया जा रहा है। वैसे ही मरू स्थली राजस्थान में प्रतापी राजा जेवरसिँह और माता बाछल की कोई संतान नहीं थी। राजा- रानी बहुत ही दु:खी थे। लोग जनमानस उनको बहुत ताने देते थे। जिसके कारण दोनों बहुत दु:खी परेशान थे। माता बाछल ने गुरु गोरक्षनाथ की बारह वर्षो तक ज्योत जलाकर कठिन साधना की जिसके फलस्वरूप गुरु गोरक्षनाथ जी प्रभावित होकर उन्हें पुत्र का वरदान ददरेवा आकर दे देते हैं।
लेकिन जब वो ध्यान करते है। तो देखते हैं। कि माता बाछल के संतान का योग ही नहीं है। तब गुरु गोरक्षनाथ ब्रह्म देव के पास जाते है। ओर उनसे माता बाछल का पुरा वृतांत सुनाते है। ओर कहते है कि मैने बाछल को पुत्र का वरदान दे दिया है। अब आप ही कुछ करे। मेरा दिया हुआ वचन गारद नहीं होना चाहिए। यह सुनकर ब्रह्म देव गुर गोरक्षनाथ को उनके गुरु मछंदर नाथ जी के पास भेजते है। फिर दोनों गुरु चेले नाग लोक (पाताल लोक) जाते है। वहां मंछदर नाथ अपनी माया शक्ति से गूगल फल प्राप्त करते हैं। वो गूगल गुरु गोरक्षनाथ लाकर माता बाछल को देते हैं। जिससे माता बाछल कि खुशियों आपार हो जाती हैं। ओर वो गूगल अपनी पांच दासियों को बांट कर खाती है। जिससे पांच वीरों का जन्म भादवा नवमी को होता है। 1. गोगादेव 2. नरसिंह पांडे 3. भजजू कोतवाल 4. रतन सिंह चावरिया (वाल्मीकि )5. निला घोड़ा।
गोगा देव वाल्मीकि समाज के आराध्य क्यू है ओर कैसे हैं —
वाल्मीकि कोम के रतन सिंह जो कि बहुत ही बहादुर, देश भक्त, निडर, शक्ति शाली, युध्द कला में निपुण जिसके साहस को देखते हुवे, गोगा देव चौहान ने उन्हें अपनी सैना का सेना पति बनाया। मुगलों से युध्द में रतन सिंह शहीद हुवे। गोगादेव चौहान विजयी हुवे। जब विजयी होकर गोगा देव चौहान लोटे तब रतन सिंह चांवरिया के पिता श्याम लाल चांवरिया माता राम देहुति ने अपने पुत्र रतन सिंह को न पाकर बहुत विलाप किया। तभी गोगा चौहान ने उन्हें एक धर्म ध्वजा भाले में (झंडा) दिया। ओर कहा कि अब से मैं ही गोगा ओर मैं ही रतन सिंह हूं। जब भी रतन सिंह की याद आऐ यह झंडा खड़ा कर देना। उस समय छुआ-छूत चरम पर था। उसको मिटाने, सामाजिक समरसता का संदेश गोगादेव चौहान ने दिया।
इसी वजह से वो वाल्मीकि समाज के आराध्य है। गोगा देव चौहान के चर्चे ओर पर्चे, चमत्कार को देखते हुवें। ये वीर होने के साथ पीर भी कहलाऐ। सीरियल नवमी पर गोगा देव चौहान ने ददरेवा में जिंदा समाधि ली। जो बागड धाम राजस्थान में भव्य मंदिर स्थापित है। जहां करोड़ो लोग अपनी आस्था निष्ठा, लेकर जाते हैं। ओर उनकी हर मनोकामनाऐं पुरी होती हैं।
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