धार। (मदन काबरा) अब तक लोकसभा चुनावों के लेकर मतदान के म.प्र. के साथ विभिन्न प्रांतों मे दुसरे दौर के बाद भी मतदान का प्रतिशत जो घटाव दर्शा रहा है, वह राजनीतिक दलों मे खासकर भाजपा को चिन्तित करनेवाला नजर आ रहा है। विधानसभा 2023 मे चुनाव लोकतंत्र के इस महापर्व को लेकर जो उत्सवमय वातावरण था, उसका लोकसभा चुनाव मे नितांत अभाव नजर आ रहा है।
आगामी 13 मई को मालवा-निमाड के साथ अधिकांश लोकसभा सीटों पर मतदान होना है, और समय बहुत नजदीक है। परन्तु दोनों प्रमुख दलों के प्रत्याशियों के सम्पूर्ण क्षेत्रों मे जनसम्पर्क का अभाव है तो वही कांग्रेस प्रत्याशी बहुत पिछड़ते नजर आ रहे है। वैसे इस लोकसभा क्षेत्र मे आठ विधानसभा मे से पाच पर कांग्रेस की विजयीश्री, कांग्रेस को अतिआत्ममुग्धता के चलते विजयीश्री वरण के कितने नजदीक तक ले जाती है यह परिणाम बतायेंगे।
वही भाजपा संगठन मे भी निरसता का वातावरण क्या गुल खिलायेगा या एक बार फिर मोदी सरकार मे मोदी की ग्यारण्टी कितनी कारगर साबित होगी यह चुनाव परिणाम मे देखने को मिलेगा।
खैर लोकसभा क्षेत्र धार मे आदिवासी बाहुल्य वाले क्षेत्र मे कांग्रेस का दबदबा है और यहां आर.एस.एस.जैसे संगठन जमीनी स्तँर पर अपनेतई मीटिंग रख कर अपने स्वंयसेवको को मैदानेजंग लगाने के लिए उनके प्रांतीय पदाधिकारी दौरा कर बैठक व जायजा लेकर नवप्राण फुकंने का प्रयास कर रहे है। परन्तु दुर्भाग्य यह है कि ये प्रांतीय पदाधिकारी किसी भी स्वंयसेवको का न तो फोन अटैंड करते है न बात करते है, बड़े वी.आई.पी. गंभीर चिंतन शील व्यक्तित्व के साथ वे पेश आ रहे है जो कि इस क्षेत्र की तासीर के विपरीत है। वे इन आदिवासी क्षेत्र की नब्ज पहचान नही पा रहे है।
यही नही भाजपा संगठन के पदाधिकारी भी लोकसभा क्षेत्र मे अधिकांशतः दौरा नही करते नजर आ नही रहे है, उनके नही करने के पिछे आर्थिक कारण भी महत्वपूर्ण है, वही चुनाव प्रचार साम्रगियों का अभाव भी प्रमुख कारण हो सकता है। इसलिये भाजपा अपना जनसम्पर्क अभियान बुथस्तँर तक जाने की कागजी तैयारी मे अग्रसर नजर आ रही है।
पंचायत चुनावों से लेकर विधानसभा चुनावों तक मे बाग मंडल अध्यक्ष की बेरुखी व नीरसता व कांग्रेस नेताओं के साथ गलबहियां के चलते जिला भाजपा की अनुशंसा पर यहाँ मण्डल अध्यक्ष तो बदल दिया गया। परन्तु इस बदलाव का प्रभावी असर अब तक कही भी नजर नही आ रहा है। सब कुछ उसी पैटर्न पर चलता नजर आ रहा है। मंडल अध्यक्षों का सामाजिक सरोकारों से परहेज भी समझ से बाहर है, वही कांग्रेस समर्थित मंचों पर कांग्रेस नेताओं के साथ पूर्व मंडल अध्यक्ष जैसी कार्यप्रणाली इन भाजपाइयों को किस दिशा मे कैसी सफलता दिलवाती है, यह सब संगठन की अपनी बारिकी व पारखी नजरों से अध्ययन तो करना पड़ेगा तभी यहां भाजपा मजबूत हो पायेगी।
पिछले दिनों भाजपा प्रत्याशी का बाग नगर के साथ ग्रामीण क्षेत्रों मे जनसम्पर्क अभियान अपनी वह अमिट छाप नही छोड़ पाया जिससे भाजपा के कमल को खिलने का कोई सार्थक प्रयास सफल नजर आ रहा हो। बस ऊपर के निर्देशों से कागजातों की पूर्ति पूरी करते नजर आ रहा है, जैसा पूर्व मंडल अध्यक्ष की टीम ने अपनी कार्यप्रणाली को अंजाम किया था, वही टीम अब अध्यक्ष को घेरे हुएं है। शायद इन भाजपाइयों का मानना है कि हम तो मोदी नाम की नदी मे लोकसभा की इस वैतरणी को पार कर जायेंगे। यही मुगालता भाजपा को विजयीश्री वरण करवा देगा।
वही कांग्रेस के हालात तो भाजपा से भी बदतर नजर आ रहे है। यहां लोकसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस संगठन की एक भी बैठक नही होना और न ही लोकसभा प्रत्याशी का इस क्षेत्र मे जनसंपर्क अभियान भम्रण नही होने जैसे आज तक के यह हालात देखकर ऐसा लगता है कि, कांग्रेस ने जैसे भाजपा को क्या वाक ओवर दे दिया।
ताज्जुब तो यह भी है कि, भाजपा का मंडल अध्यक्ष ग्राम पंचायत बाग का सरपंच है तो कांग्रेस का ब्लॉक अध्यक्ष ग्राम पंचायत बाग का उपसरपंच है। गांव के विकास की बात मे जब दोनो के विचार एक हो, कांग्रेस समर्थित नेताओं के कवि सम्मेलन मंच पर दोनों की भागीदारिता हो तो, राजनीतिक संगठन मे यह जिम्मेदारी कैसी होगी। सहज समझा जा सकता है।
बताया जाता है कि पूर्व मंडल अध्यक्ष को शायद इन्हीं कारणों से उनके पद से बिदा किया था।परन्तु आज पूनः हालात तो वही नजर आ रहे है कि बनियों (साहूकारों) की गादी से ही दोनों दलों की राजनीति चल रही है। वह किसके सेहत के लिए फायदेमंद हो सकती है यह चुनाव परिणाम बतायेंगे परन्तु हाल फिलहाल मे राजनीतिक निरसता ने शुन्य से आगे के अंक पाने व बढ़ने के लिए प्रमुख राजनीतिक दल की निष्क्रियता आमजनचर्चा का विषय बनी हुई है।
संपादक- श्री कमल गिरी गोस्वामी
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