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आस्था या अंधविश्वास, जान जोखिम में डालते श्रद्धालु

सरदारपुर/धार। जितेंद्र जैन – परंपराओं से भरे धार जिले के दसाई में दीपावली पर्व बडी आस्था और धुमधाम से मनाया गया। बाजारों में भारी भीड़ देखने को मिली बच्चों से लेकर बड़ों तक ने जमकर खरीददारी कर आतिशबाजी एवं मिठाइयों का भरपूर आनंद लिया। वहीं पड़वा के दिन मनाया जाने वाला गाय गोहरी उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया गया।

यहां के स्थानीय लोग हर साल दिवाली के बाद ये उत्सव मनाते हैं। आदिवासी बहुल क्षेत्र में इस उत्सव को मनाने का एक अलग ही रिवाज है। मन्नतधारी लोग सड़कों पर लेट जाते हे पीछे से समाजजन सैकडों गायों को उनके ऊपर से दौड़ाते हुए निकालते हैं और जो मन्नत होती है उसे पूरा करते हैं। इस दिन को हिंदू लेखा जोखा के लिए नववर्ष के रूप में भी माना जाता है।

क्या होता है गाय गौहरी मे —

गाय गोहरी के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए समाज के रामप्रसाद परमार ने बताया कि आस्था और परंपरा के लिए यह उत्सव आज ही के दिन प्रतिवर्ष दिन में दो बार बनाया जाता है। धरती माता की पूजन कर सदियों से चली आ रही इस परंपरा को निभाया जाता है।

क्या है परंपरा —

खतरे से भरी इस अनूठी और रोमांचक परंपरा के बारे में जानकारी देते हुए समाज के हरे सिंह ने बताया कि आदिवासी समाज वर्ष भर में गायों को चराने उनके रखरखाव के दौरान हुए कष्ट के साथ समस्त त्रुटियों एवं गलतियों के बदले गोहरी पढ़ते हैं। साथ ही परिवार और बच्चों की अच्छी सेहत और सुख-समृद्धि की कामना गो माता से करते हुए मन्नत मांगते हैं। मन्नत पूरी होने पर दीपावली के दूसरे दिन गाय गोहरी होती है। गाय का खुर छू गया तो माना जाता है कि गो माता का आशीर्वाद मिल गया।

गोवर्धन पूजा —

दीपावली के अगले दिन महिलाओं द्वारा गाय के गोबर से बनाए गए गोवर्धन की पूजा की जाती है। लोग इसे अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं। इस त्यौहार का भारतीय लोकजीवन में बहुत महत्व है। इस पर्व में प्रकृति के साथ मानव का सीधा सम्बन्ध दिखाई देता है। गोवर्धन पूजा में गोधन अर्थात गायों की पूजा की जाती है। गौ के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है और इसके प्रतीक के रूप में गाय की।

संपादक- श्री कमल गिरी गोस्वामी

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