सिर्फ अपने अस्तित्व को साबित करने, राजनीतिक माइलेज और सुर्खियों के लिए इस तरह के विरोध होते हैं !
धार। ‘सांप गुजर जाने के बाद लकीर पीटने’ की कहावत की तरह यूनियन कार्बाइड के कचरे को जलाने के विरोध की नौटंकी हो रही है। जिससे ये भी स्पष्ट हो गया कि ये सारा विरोध फ़िज़ूल और बिना तथ्यों का है। साथ ही ये भी प्रतीत होता है कि हमारे वैज्ञानिक और विशेषज्ञों से ज्यादा समझ इन विरोधियों में है।
जब बाकायदा केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में इस आशय का शपथ पत्र दिया है कि इससे पर्यावरण और स्वास्थ्य पर कोई असर नहीं पड़ेगा और सबूत के रूप में जो थोड़ा कचरा जलाया था, उसकी स्टडी रिपोर्ट प्रस्तुत की गई और उसी से संतुष्ट होकर सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने कचरा निपटान की अनुमति दी।
पीथमपुर में जो रामकी कंपनी का इंसीनरेटर लगा है, जिसमें यह कचरा भस्म होगा, उसे 126 करोड में ठेका दिया गया है। सिर्फ अपने अस्तित्व को साबित करने, राजनीतिक माइलेज और सुर्खियों के लिए इस तरह के विरोध होते हैं। लाख टके का सवाल है कि अगर यूनियन कार्बाइड का कचरा अभी भी नहीं जलाया तो क्या उसे अनंत काल तक डंप रहने दिया जाएगा ..?
40 साल पहले हुई दुर्घटना के बाद उसके अपशिष्ट यानि कचरे को क्या किसी म्यूजियम में सहेज कर रखा जाएं, जबकि दुनिया भर में इस तरह के कचरे वैज्ञानिक पद्धति से भस्म होते रहे हैं, मगर विरोध की नौटंकी करने वाली बिरादरी को इससे कोई मतलब नहीं है। अब जबकि कचरा पीथमपुर पहुंच चुका है, तब इसकी प्रक्रिया का प्रेजेंटेशन देने और जनप्रतिनिधियों को समझाने के तमाशे का भी कोई मतलब नहीं है, ये कवायद तो पहले होना थीं।
वैसे भी जनता द्वारा चुनी जाने वाली सरकारें ऐसे फैसले हवा में नहीं लेती है। उसके पीछे अनुमतियों की एक पूरी प्रक्रिया होती है और यूनियन कार्बाइड का मामला तो और भी संवेदनशील है। जिसका ठीकरा कांग्रेस पर फोड़ा जाता रहा है। ऐसे में केंद्र की मोदी और प्रदेश की मोहन सरकार ने क्या आंख मूंदकर ये निर्णय लिया। पर्यावरण और जन स्वास्थ्य की चिंता में दुबले हो रहे विरोधियों को सलाह है कि वे तीर कमान से निकलने के बाद उसे रोकने की उछलकूद करने की बजाए समय पर जागने की आदत डाले।
इस मामले में अब अदालत के अलावा कचरा जलाने की प्रक्रिया को कोई रोक नहीं सकता..! हालांकि मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने भी क्लियर कर दिया है कि जलाया जा रहा कचरा अब जहरीला नहीं रहा और इससे कोई नुकसान नहीं होगा।
संपादक- श्री कमल गिरी गोस्वामी
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