18/09/2024

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These are the disadvantages of marriage within the same clan to children, case of Deputy Commissioner who married his niece

These are the disadvantages of marriage within the same clan to children, case of Deputy Commissioner who married his niece

एक ही गोत्र में शादी से बच्चों को ये नुकसान, भतीजी से शादी करने वाले डिप्टी कमिश्नर मामला

भतीजी से शादी करने वाले डिप्टी कमिश्नर शिव शक्ति के तर्क कितने सही? कानून और वैज्ञानिक कारण जान दंग रह जाएंगे !

सजल और शिव शक्ति की सगोत्रीय शादी हिन्दू विवाह कानून, समाज और विज्ञान के अनुसार अवैध मानी गई है। एक अखबार के अनुसार हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 इसे प्रतिबंधित करता है, और धारा 18 के तहत सजा और जुर्माने का प्रावधान है। इस कानून का मुख्य उद्देश्य इन शादियों से होने वाले आनुवंशिक विकारों को रोकना है।

बेगूसराय/बिहार। बेगूसराय में डेप्युटी कमिश्नर और उसकी भतीजी की शादी इन दिनों खासी चर्चा में है। अफसर शिव शक्ति और उनकी भतीजी ने शादी करने के बाद कई तर्क दिए हैं। इस दौरान उन्होंने अपना एक वीडियो भी जारी किया है। वहीं अधिकारी पर सरकार कार्रवाई भी कर रही है। लेकिन क्या ऐसे करीबी रिश्तों में शादी मान्य है और वो भी हिंदू समाज में। कानून के जानकारों की माने तो नहीं। सजल और शिव शक्ति की शादी चर्चा में है क्योंकि यह हिन्दू विवाह कानून के मुताबिक सही नहीं है। कानून के साथ-साथ विज्ञान भी इस तरह की शादी को मंजूरी नहीं देता है। अब आप पढ़िए कि ऐसा विवाह यानी सपिंड विवाह क्या होता है, यह क्यों वर्जित है और इसके क्या परिणाम हो सकते हैं।

सबसे बड़ा खतरा सपिंड विवाह से पैदा होने वाले बच्चों के स्वास्थ्य को होता है। एक ही पूर्वजों से आने की वजह से ऐसे दंपत्ति अपने बच्चों को नुकसानदायक जीन्स दे सकते हैं। इससे बच्चे के जन्म से पहले या जन्म के बाद कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं, यहाँ तक कि मौत भी। ऐसे बच्चों में कई तरह के जन्मजात दोष, मेटाबोलिज्म से जुड़ी समस्याएं और आनुवंशिक विकार देखने को मिलते हैं। इन विकारों में इम्युनोडेफिशिएंसी, बीटा-थैलेसीमिया, हाई बीपी, प्रोटीन-सी और प्रोटीन-एस की कमी, फेनिलकीटोन्यूरिया और कम वजन जैसी समस्याएं शामिल हैं। गर्भपात, मेडिटरेनीयन फीवर, थैलेसीमिया और सेरेब्रल पाल्सी जैसी गंभीर बीमारियां भी हो सकती हैं।

हिंदू धर्म में एक ही गोत्र में विवाह मान्य नहीं —

हिन्दू धर्म में, सगोत्र विवाह को पहले से ही मान्यता नहीं दी जाती है, खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा जैसे राज्यों में। ऐसा करने वालों के खिलाफ खाप पंचायतें कार्रवाई भी करती हैं। मुस्लिम धर्म में सगोत्र विवाह की इजाजत है, लेकिन सिर्फ एक ही मां के बच्चों को छोड़कर। सुप्रीम कोर्ट के एक वकील के अनुसार, हिन्दू विवाह अधिनियम में रक्त संबंधियों के बीच शादी को ‘सपिंड विवाह’ कहा गया है। हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 3 (f) (i) स्पष्ट रूप से कहती है कि, ‘एक हिन्दू किसी ऐसे व्यक्ति से विवाह नहीं कर सकता है जो मां की ओर से उनकी तीन पीढ़ियों में हो, जबकि पिता की ओर से यह पांच पीढ़ियों पर लागू होता है।’ साथ ही, धारा 5 (v) भी सपिंड विवाह पर रोक लगाती है।

कानून में भी ऐसी शादी मान्य नहीं —

कानून के मुताबिक, सपिंड विवाह करने पर धारा-18 के तहत सजा और जुर्माने का प्रावधान है। ऐसा करने वालों को एक महीने की जेल या फिर 1000 रुपए तक का जुर्माना हो सकता है। इस कानून का मकसद है कि एक ही पूर्वजों के वंशजों के बीच शारीरिक संबंध न बनें। ऐसा इसलिए क्योंकि इससे कई तरह की शारीरिक और मानसिक समस्याएं पैदा हो सकती हैं। हाल ही में, दिल्ली हाईकोर्ट में ‘नीतू ग्रोवर बनाम भारत संघ और अन्य-2024’ केस में हिन्दू विवाह अधिनियम-1955 की धारा 5 (v) को चुनौती दी गई थी। हालांकि, हाईकोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया और धारा 5 (v) पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।

एक ही गोत्र में शादी से ये बच्चों को ये नुकसान —

सबसे बड़ा खतरा सपिंड विवाह से पैदा होने वाले बच्चों के स्वास्थ्य को होता है। एक ही पूर्वजों से आने की वजह से ऐसे दंपत्ति अपने बच्चों को नुकसानदायक जीन्स दे सकते हैं। इससे बच्चे के जन्म से पहले या जन्म के बाद कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं, यहाँ तक कि मौत भी। ऐसे बच्चों में कई तरह के जन्मजात दोष, मेटाबोलिज्म से जुड़ी समस्याएं और आनुवंशिक विकार देखने को मिलते हैं। इन विकारों में इम्युनोडेफिशिएंसी, बीटा-थैलेसीमिया, हाई बीपी, प्रोटीन-सी और प्रोटीन-एस की कमी, फेनिलकीटोन्यूरिया और कम वजन जैसी समस्याएं शामिल हैं। गर्भपात, मेडिटरेनीयन फीवर, थैलेसीमिया और सेरेब्रल पाल्सी जैसी गंभीर बीमारियां भी हो सकती हैं।

बच्चों को हो सकती हैं ऐसी बीमारियां —

मानसिक मंदता, कमजोर दृष्टि और कम सुनाई देना जैसी समस्याएं तो आम हैं। साथ ही, सिस्टिक फाइब्रोसिस, टे-सैक्स, सिकल सेल एनीमिया, गंभीर संयुक्त इम्युनोडेफिशिएंसी (SCID), ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी, बेकर मस्कुलर डिस्ट्रॉफी और ब्लूम सिंड्रोम जैसे विकार भी हो सकते हैं। ऐसे बच्चे टीबी और हेपेटाइटिस जैसे संक्रामक रोगों से भी आसानी से ग्रस्त हो जाते हैं। अस्थमा, डायबिटीज, कैंसर, कई तरह के हृदय रोग और ग्लूकोज-6-फॉस्फेट डिहाइड्रोजनेज की कमी जैसी बीमारियों का खतरा भी बना रहता है। चचेरे/ममेरे भाई से शादी की स्थिति में मिर्गी, कम उम्र में सिजोफ्रेनिया आदि होने की भी आशंका रहती है।

संपादक- श्री कमल गिरी गोस्वामी

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